SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ *** बृहज्जैनवाणीसंग्रह ९४ - अथ विसर्जन पाठ | ज्ञानतोऽज्ञानतो वापि शास्त्रोक्तं न कृतं भया । तत्सर्वं पूर्णमेवास्तु त्वत्प्रसादाजिनेश्वर । आह्वानं नैव जानामि नैव जानामि पूजनं । विसर्जनं न जानामि क्षमस्व परमेश्वर ||२|| मंत्रहीनं क्रियाहीनं द्रव्यहीनं तथैव च । तत्सर्वं क्षम्यतां देव रक्ष रक्ष जिनेश्वर ||३|| आहूता ये पुरा देवा लब्धभागा यथाक्रमं । ते मयाऽभ्यर्चिता भक्त्या सर्वे यांतु यथास्थिति ॥ ९५ - अथ भाषास्तुतिपाठ । तुम तरणतारण भवनिवारण, भविकमन आनंदनो । श्रीनाभिनंदन जगतवंदन, आदिनाथ निरंजनो ॥१॥ तुम आदिनाथ अनाद देवकि सेय पदपूजा करूँ । कैलाश गिरिपर रिषभजिनवर, पदकमल हिरदै धरूँ ||२|| तुम अजितनाथ अजीत जीते, अष्टकर्म महाबली । इह विरुद सुनकर सरन आयो, कृपा कीज्यो नाथ जी ॥३॥ तुम चन्द्रचंदन सु चन्द्रलच्छन चन्द्रपुरि परमेश्वरो । महासेननन्दन जगतबन्दन चन्द्रनाथ जिनेश्वरो ||४|| तुम शांति पांचकल्याण पूजों, शुद्धमनवचकाय जू । दुर्भिक्ष चोरी पापनाशन विधन जाय पलाय जू ||५|| तुम बालब्रह्म विवेकसागर, भव्यकमल विकाशनो | श्रीनेमिनाथ पवित्र दिनकर, पापतिमिर विनाशनो ॥६॥ जिन तजी राजुल राजकन्या, कामसैन्या वश करी | चारित्ररथ चढ़ि भये दूलह, जाय शिव 1 २१५
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy