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________________ KAARAKSHA- KHARA wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww वृहज्जैनवाणीसंग्रह २०३ ॥ *वीरजकोषं ॥ २ ॥ सौरीप्रभ सौरीगुणमालं । सुगुण विशा ल विशाल त्यालं । वज्रधार भव गिरिवज्जर हैं । चंद्रानन चंद्रानन वर हैं।३ ।। भद्रबाहु भद्रनिके करता। श्री भुजंग भुजंगम हरता ॥ ईश्वर सबके ईश्वर छाजै । नेमि* प्रभु जस नोंमे विराजै ॥ ४॥ वीरसेन वीरं जग जाने । * महाभद्र महभद्र बखानै ।। नमों जसोधर जसधरकारी । नमों अजितवीरज बलधारी ॥५॥ धनुष पांचसै काय विराजै। आव कोडिपूरव सब छाजै ॥ समवसरण शोभित जिनराजा। भवजलतारनतरन जिहाजा ॥६॥ सम्यक * रत्नत्रयनिधिदानी । लोकालोक प्रकाशक ज्ञानी ॥ शत इन्द्रनिकरि बंदित सोहैं। सुरनर पशु सबके मन मोहैं ॥७॥ * दोहा-तुमको पूजै बंदना, करै धन्य नर सोय। ___'चानत' सरधा मन धरै, सो भी धरमी होय ॥ ___ ओहीं विद्यमानविशतितीर्थकरेभ्यो महा निर्वपामीति स्वाहा ॥ *३२ । अथ विद्यमानवीस तीर्थंकरोंका अर्घ। ॥ उदकचन्दनतन्दुलपुष्पकैश्चरुसुदीपसुधूपफलाकैः। धवलमंगललगानरवाकुले जिनगृहे जिनराजमहं यजे ॥ * ओं ही श्री सीमंधरयुग्मंघरबाहुसुबाहुसंजातस्वयंप्रभऋषिभानन । ॐ अनन्तवीर्यसूर्यप्रभविशालकीर्तिवनधरचद्राननभद्रबाहुभुजंगमईश्वरनेमिप्रभवीरसेनमहाभद्रदेवयशअजितवीर्येतिविंशतिविद्यमानतीथे करेभ्योऽर्ध निर्वपामीति स्वाहा। KANTR6- 55K
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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