________________
वृहज्जैनवाणीसंग्रह
सिंहपीठ मनोहरो ॥ रमणीक अमरविमान फणिपति-भुवन रवि छवि छाजई । रुचि रतनरासि दिपंत, दहन सु तेजपुंज विराजई ||३|| ये सखि सोरह सुपने सूती सयनहीं । देखे माय मनोहर, पच्छिम रयनहीं ॥ उठि प्रभात पिय पूछियो, अवधि प्रकाशियो । त्रिभुवनपति सुत होसी, फल तिहँ भासियो || भासियो फल तिहिं चित्त दंपति परम आनंदित भये । छहमासपरि नवमास पुनि तई, रैन दिन सुखसों गये || गर्भावतार महंत महिमा, सुनत संव सुख पावहीं। भणि 'रूपचंद ' सुदेव जिनवर जगत मंगल गावहीं ॥४॥
1
१६५
२ । जन्मकल्याणक ।
मतिश्रुतअवधिविराजित, जिन जब जनमियो । तिहुलोक भयो छोभित, सुरगन भरमियो । कल्पवासि घर घंट, अनाहद बज्जिया | जोतिषघर हरिनाद, सहज गल गजिया | गजिया सहजहिं संख भावन, भुवन सवद सुहावने । विंतरनिलय पटु पटह बजहि, कहत महिमा क्यों बने || कंपित सुरासन अवधिवल जिन जनम निहचै जानियो । धनराज तव गजराज माया-मयी निरमय आनियो ||५|| जोजन लाख गयंद, बदन सो निरमये | बदन बदन वसुदंत, दंत सर संठये ॥ सरसर- सौ पनवीस, कमलिनी छाजहीं । कमलिनि कमलिनि कमल पचीस विराजहीं ॥ राजहीं कमलिनी कमलSठोतर सो मनोहर दल बने । दल दलहिं अपंछर नटहिं नवरस, हाव भाव सुहावने ॥ मणि कनककिंकणि वर वि