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१ १५० वृहज्जैनवाणीसंग्रह ।
तापसगृहकीर । काव्यबंधवनपिक तुम वीर ॥ मोक्षमल्लिका मधुपरसाल । पुन्यकथा कजसरसि मराल ॥ तुम जिनदेव । * सुगुण मणिमाल । सर्वहितंकर दीनदयाल ॥ ताको कौन न
उन्नतकाय । धेरै किरीटमाहि हर्षाय ॥ केई बांछे शिवपुर । * बास । केई करै वर्गसुख आस ॥ पचै पँचानल आदिक काठान । दुख बंधै जस बँधै अयान ॥ हम श्रीमुखवानी अनु* भवै । सरधा पूरव हिरदै वै । तिस प्रभाव आनन्दित रहैं। स्वर्गादि सुख सहजे लहैं ।। न्होन महोच्छव इन्द्रन कियो।। सुरतिय मिल मंगल पढ लियो। सुयशशरदचंद्रोपम सेत ।।
सो गंधर्व गान कर लेत ॥और भक्ति जो जो जिस जोग।। * शेष सुरन कीनी सुनियोग ॥ अव प्रभु करैं कौनसी सेव । १ * हम चित भयो हिंडोलो एव ॥२२॥ जिनवर जन्म
कल्यानक योस । इंद्र आप नाचै कर होस । पुलकित अंग । पिताघर आय । नाचनविधिमें महिमा पाय ॥ अमरी वीन !
बजावै सार। धरी कुचाग्र करत झंकार ॥ इहिविधि कौतुक क देख्यो जबै । औसर कौन कह सकै अवै ॥ २३॥ श्रीप्रति * विब मनोहर एम । विकसतवदन कमलदल जेम॥ ताहि । * हेर हरखे ग दोय । कह न सकू इतनो सुख होय ॥ तय । सुरसंग कल्यानक काल । प्रगटरूप जोवै जगपाल ॥ इकपटक दृष्टि एक चितलाय । वह आनंद कहा क्यों जाय ॥२४॥
देख्यो देव रसायन धाम । देख्यो नव निधिको विसराम।। चिंतारयन सिद्धिरस अवै । जिनगृह देखत देखे सबै ॥ |