________________
*RKEKKERS-15HREKK
1.ས བཀའགག བགམ
བཀའག ཀཀཀཀ -
MANANAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA.
. वृहज्जैनवाणीसंग्रह १३१ । उधारी ॥ तुम सेवक ततकाल ताहि निहचै कर धार । थुति । कुदालसों खोद बंद भू कठिन विदार ॥१५॥ स्यादवादगिरि उपजै मोक्ष सागर लो धाई। तुम चरणांबुज परस। भक्तिगंगा सुखदाई । मोचित निर्मल थयो न्होन रुचिपूरव । तामैं । सव वह हो न मलीन कौन जिन संशय यामैं ॥१६॥ तुम शिवसुखमय प्रगट करत प्रभु चिंतन तेरो । मैं भगवान । समान भाव यो वरतै मेरो॥ यदपि झठ है तदपि तृप्ति । निश्चल उपजावै । तुव प्रसाद सकलंक जीव वांछित फल पावै ॥१७॥ वचन जलधि तुम देव सकल त्रिभुवनमें व्यापै।। मंगतरंगिनि विकथवादमल मलिन उथापै ॥ मनसुमेरुसों। मथै ताहि जे सम्यग्ज्ञानी। परमामृत सों तृषत होहिं ते ।
चिरलों पानी ॥१८॥ जो कुदेव छविहीन वसन भूषन अभि१ लाख ॥ वैरी सो भयभीत होय सो आयुध राखै ॥ तुम * सुंदर सर्वग शत्रु समग्थ नहिं कोई । भूषन वसन गदादि ।
ग्रहन काहेको होई ॥ १९॥ सुरपति सेवा करै. कहा प्रभु प्रभुता तेरी । सो सलाधना लहै मिटै जगसों जगफेरी । तुम भवजलधि जिहाज तोहि शिवकंत उचरिये। तुही जगतजनपाल नाथथुतिकी थुति करिये ॥२०॥ वचनजाल जड़
रूप आप चिन्मूरति झांई । ताः थुति आलाप नाहिं पहुंचे। है तुम ताई ॥ तो भी निर्फल नाहिं भक्तिरसमीने वायक।
संतनको सुरतरु समान वांछित वरदायक ॥२१॥ कोप कमी
नहिं करो प्रीति कबडूं नहिं धारो । अति उदास.बेचाहः चित्त * -* -5225
*