SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ARNAAAAAAAAAAAAAAAAA mmmmmmromanmaina Ann । १२० बृहज्जैनवाणीसंग्रह सीदंतमय भयदव्यसनांबुराशेः ॥४१॥ यद्यस्ति नाथ भव। दंघ्रिसरोरुहाणां भक्तेः फलं किमपि संततसंचितायाः । तन्मे । त्वदेकशरणस्य शरण्य भूयाः स्वामी त्वमेव भुवनेत्र भवांत रेऽपि ॥४२॥ इत्थं समाहितधियो विधिवजिनेन्द्र सांद्रोल्ल-1 * सत्पुलककंचुकितांगभागाः । त्वविनिर्मलमुखांबुजबद्धल क्ष्याः ये संस्तवं तव विभो रचयंति भव्याः ॥४३।। जननयन* कुमुमदचंद्रप्रभास्वराः स्वर्गसंपदो मुक्त्वा। ते विगलितमल* निचया अचिरान्मोक्षं प्रपद्यते ॥४४॥ ६२-कल्याणमंदिरस्तोत्र भाषा। दोहा-परमज्योति परमात्मा, परमज्ञान परवीन ॥ बदूं परमानंदमय, घट घट अन्तरलीन ॥१॥ चौपाई-निर्भय करन परम परधान । भवसमुद्रजलतारनयान ॥ शिवमंदिर अघहरन अनिंद। बंदह पासचरन , अरविंद ॥ १ ॥ कमठमानभंजन वरवीर । गरिमासागर * गुनगंभीर ॥ सुरुगुरु पार लहैं नहिं जास। मैं अजान जंपू * जस तास ॥ २ ॥ प्रभुखरूप अति अगम अथाह । क्यों है । हमसेती होय निवाह । ज्यों दिनअंध उलूको पोत । कहि । *न सकै रवि-किरन-उदोत ॥३॥ मोहहीन जानै मन माहिं । तोहु न तुम गुन वरने जाहिं ॥ प्रलयपयोधि करै । * जल बौन । प्रगटहिं रतन गिनै तिहिं कौन ॥ ४॥ तुम का असंख्य निर्मल गुनखान । मैं मतिहीन कहूं निजवान ॥ ज्यों बालक निज बांह पसार । सागर परमित कहै विचार॥
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy