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विशेषा नयः” एम ट्रेक नयो वस्तुना स्थाभिष्ट एक अंशने प्रतिपादन करे छे तेथी ते विकल्प मागै छे. जे एकांते पोताना अभिष्ट धर्मनेज स्थापन करे छे नेमां रहेला बीजाधर्मोने तिरस्कारे छे. श्रोलवे के, अपेक्षा राखतो नथी ते दुर्नय अथवा नयाभास छे. स्वाभिप्रेतादंशा दितरांशा पलापी पुनर्नयाभास " अने जे वस्तुमा रहेला कोइ पणधर्मने तिरस्कारतोनथी अर्थात् तेनी अपेक्षा राखे छे एम बताधवाने स्यात्पद युक्त अभिष्ठ धर्मनु प्रतिपादन करे छे ते सुनय छे, स्थावाद के, प्रमाण वाक्य छे, तेज हे जिनेश्वर ! भापना परम श्रागमनुं धीज [ जीवन ] छे, जे सर्वे एकांत वादे मचेला उनमत हाथी उना मदने भजन करवाने मिह ममान छे, वस्तुनुं यथार्थ सर्वांगे स्वरूप जाणथा दिव्य ज्ञान दृष्टि छ, उक्तंच-स्यादाद्मजगैराग-उपेंद्रवज्रा ॥ · सदेव सत्सयात् सदिति त्रिधार्थो, मीयेत दुनौति नय प्रमाणै; यथार्थ दर्शातु नयप्रमाण, पयेन दुर्नीति पथं त्वमास्थः अर्थ-सत्यज छे, सत् छ भने स्यात् सत् के एवी रीतनो त्रण प्रकारनो अर्थ अनुक्रमे दुर्नय, नय अने प्रमाण वडे मापी शकाय छे भने यथास्थित पदार्थ