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छो. जे मुग्द प्राणीउ ते विषयोने सुख हेतु जाणे तेने नेनी कामना थाय अने तेज तनी चाहरूप दाहमा प्रवेश करी पोताना आत्म भोगने दग्ध करे पण श्राप तो केवल सम्यक्ज्ञानी होवाथी शुभाशुभ-शाता अशाता बनेना उद्यने श्रात्मगुणना रोधक होबाथी दुःख रूपज जुउछो तथी आपने , तनी कासनानो बिलकुल संभव नथी, निरंतर निष्कामी छो. तथा शुद्धात्म ज्ञान दर्शन चारित्र गुणने स्वाधीन अविनश्वर तथा परमानंदना हेतु जापी निरंतर तमांज रमण करवावाला तथा तेनाज भोगमां परम संतुष्ट छो. एवी आपनी परमोत्कृष्ट अवस्था जोइ ते पद साधवानी मने रूची थइ तथा ते पद साधवानो समीचीन मार्ग पण चापे बतायो तथो खरेखर मारा मनने परम विश्रामना हेतु प्रापजछो. ॥ १ ॥
केवलज्ञान अनंत प्रकाशी, भविजन कमल विकाशी रे॥प्र० ॥ चितानंदघन तत्त्व विलासी, शुद्ध स्वरूप निवासी रे ॥प्र०॥ श्री० ॥२॥