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___ अर्थ- अनंत केवलज्ञान रूप सूर्यनो प्रकाश करी भव्य जीवोना हृदयकमलने किश्वर करनार ज्ञाना. नंदना समूह आत्म तत्त्वमा विलास करनार तथा तेज शुद्ध स्वरूपमां निवास करनार छो. ___ अनादि कालथी ज्ञानावरणादि कर्मवडे आच्छादित थयेला अनंत केवलज्ञान रूप जलहलाटमान अद्वितीय स्सूर्यने, कर्म पडलनो नाश करी संपूर्णपणे प्रकाशमान करी अज्ञानरूप अंधकार बडे श्रावृत धएला भव्य जीवोना हृदयकमलने ज्ञानकिरणो वडे परम प्रफुल्लित करनार छो. रूप रस गंध स्पर्शादि परद्रव्यना पर्यायनो भोग, रमण, प्रास्वाद, सूर्या, कामना विगेरेनो ससूख नाश करी राग-द्वेषादि विभावको परिहार करी पोताना सहज अविनश्वर ज्ञानसमूह आत्म तत्त्वमा विलास करनार अर्थात् तेना भोगमा निमग्न छो. तेज शुद्धामस्म स्वरूपमा सदा निवास करो छो अर्थात् आपनो उपयोग त्यांथी समय मात्र पण चलतो नथी-परद्रव्यादि तरफ जतो नथी ॥२॥
यद्यपि हूं मोहादिके छलियो, पर परिणसिशु भलियो रे। प्र०॥ हवे तुज सम मुज