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साहिब मलियो, तिणे सवि भवभय टलियो रे || प्रभु अंतरजामी ॥ ३ ॥
अर्थ- जो के हुं मोहादि वडे ठगायो, परपरि - तिमां तल्लीन थइ रह्यो, पण हवे तमारा जेवा साहेबनी वाणी सांभली मने प्रतित थवाथी मारो सर्वे भवभय दूर थयो, जो के मोह श्रज्ञान मिथ्यात्यादि दुष्टोए मने वश करी मारी ज्ञानादि संपदा ठगी लोधी छे, माहरा सहज अनुपम सुख भोगथी मने वियोगी कर्पो छे, तथी हुं ते दुष्टोना वशमां पडी अत्यंत कंगाल अवस्थाने भोगवुं छु.
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परपर्याय - शरीर स्वजन परिजन तथा धन धान्यादिमां अहं ममत्त्व करी तेनेज सुख तथा सुख हेतु जाणी तेनीज इच्छा कामना करो जैम खींचडामां वसतो कीडो लीमडाना रमनेज मधुर मानी तेमां तल्लीन रहे छे, त्यांथी निकलवा चाहातो नथी, तेम हुं तेमां तल्लीन थई रह्यो, तेथी विरत थयो नहि, पण हवे हे करूणानिधे ! सर्वज्ञ भने वीतराग आप जेवा समर्थ स्वामीनी मने प्राप्ति थई - आपन दर्शन पाम्यो तेथी अनंत रोग शोक भय क्रोध मान माया लोभ अरति आदि के भरेला भव समुद्रमां भ्रमण करंवानो भय दूर थयो. कारण
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