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वडे सर्वथा नाश को छे, सर्वे प्रदेशे शुद्ध निर्मल परम पवित्र थया छो लेथी श्रापना कोइ पण प्रदेशे परभाव-नाग द्वेषादिनो विषय कषायादिनो रंच मात्र पण संश्लेष नथी, थवानो संभव पण नथी.
ज्यांमुधी भास्मा औदारिकादि शरीरमा तेमज मन वचन काय योगमां ममत्व करी वसे छे तेथी ते चल पुद्गल योगे प्रात्म प्रदेश सकंप थाय के पण ज्यारे सर्वथा नेनुं ममत्व त्याग करे स्यारे शुद्धात्म भावे अरूपी झायक स्वरूप प्रगटे. उक्तंच आचारांगे-ले णदीहे ण हस्ते ण वट्टे ण तसे ण चउरसे ण परिमंडले ण किन्हे ण णीले
ण लोहिए ण हालिद्दे ण सुकिल्ले ण सुरहिगंधे ___ण दुरहिमंधे ण तित्ते ण कडुए ण कसाये ण
अविले ण महुरे ण कख्खड ण मनुए ण गुरुए ण लहुए ण सीए ण उपदे ण णिध्धे ण लुख्ख ण काऊ णं रूहे ण संगण इत्थी ण पुरिसे ण अन्नहा परिणे सपणे उवमा ण विजाए अरूवी सत्ता अपथस्स पयं णश्थि से ण सद्दे ण रूवे ण गरेण रसे ण फासे