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ज्ञान मिष्यते बोध । स्थिति रात्मनि चारित्र
कुत एतेभ्यो भवति वन्धः ॥ " तथा "योगात
प्रदेश बन्धः स्थिति बन्धो भवति तू कषायात् । दर्शन बोध चरित्र, न योग रूपं कषाय रूपं
च ॥” ॥ ४ ॥
तम गुण विराधना, भाव दया भंडार ॥ प्रभुजी ॥ क्षायिक गुण पर्याय में, नवि पर धर्म प्रचार || प्रभुजी | बा० ॥५॥
अर्थ - ज्ञान दर्शन चारित्रादि अनंत आत्म गुणो ते भावप्राण छे भने ते भावप्राणनो विषय कषायादिके घात करवो ते भावहिंसां छे. अने ते भावप्राणं समिति गुप्ति आदि संवर वडे रक्षण करवुं घात न थाय एम अप्रमत्त भावम वर्त्ततुं ते भावया छे. ते भावदद्याना आप भंडार - निधान छो. कारण के भावप्राणना घातक मिथ्यास्वादि दुष्ट हेतुनो आपना आत्म प्रदेशमधी संवदा नाश थयो छे, क्षायिक लब्धिने पाम्या छो. तेथी अपनी सत्ताभूमिमां मिथ्यात्वादि दोषोनो रंच
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