________________
एकायना जीयोनी द्रग्यहिंसानो त्याग करवो ते __ भाव दयानो तथा भावदयाना परिणामीनो व्यवहार
थे.द्रव्यअहिंसा ते भावअहिंसानो व्यवहार-कारण थे ॥२॥
रूप अनुत्तर देवथी, अनंतगुणु अभिराम ॥ प्रभुजी ॥ जोता पण जग जंतुने न वधे विषय विराम ॥ प्रभुजी ॥ बा०॥३॥ ___ अर्थ-सर्वे जीवोने आ संसार जन्य जन्म जरा मरणादि रूप भयंकर दुःखथी छोडावी रत्नत्रय पमाडी अनंत भास्मीक परमानंदना भोक्ता करूं एवी उस्कृष्ट भावदयाना योगे अत्यंत तीब्र शुभ परिणाम वडे-सर्वोत्कृष्ट पुण्यानुषंधी पुण्यना उदये हे याहु जिनद्र! आपनु रूप लावण्य कांति, विजय विजयंत जयंत श्रपराजीत अने सर्वार्थसिद्ध । विमानवासी देवो करतां पण अनंतगुणुं अभिराम,
अतिशययुक्त, सर्वोपरी, मनोहर, रमणीय, श्राहवादकारी छे. उक्तंच-जाकी देहदुतिसो दसौ दिशा पवित्र भई; जाके तेज आगे सव तेजवंत रुके है । जाको रूप निरखी थकित महा