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उत्पन्न पर्याय के माटे ज्वारे कर्त्ता कार्य साधवानो रुचीवंत थइ तेने निमित्तमां वापरे त्यारे तेमां कारण 'पद उत्पन थाय छे. "ए कारका कर्तुराधिना ” जो आत्मा प्रमाद् भावमां वर्त्ते तो ते शुभाशुभ कर्मोदय अशुद्ध परिणामनु निमित्त धाय पण पोते सचेत थह पोताना शुद्ध कार्यनो कर्त्ता धाय त्यारे कारकचक्र सुलटे ने शुभाशुभ कर्मोदये अशुद्ध परिणामे परिणमे नहि तो ते पुद्गलो निमित्त पण , थइ शके नहि. जेम कुंभार घट कार्यनो रुचियान थाय नहि, तथा दंड चक्रा दिने ते घट कार्य साधवामां वापरे नहि, तो दंड चक्रादि तेवारे घट कार्यना निमित्त कहेवाय नहि. पण हुं अनादि विभाव वशे राग द्वेषे परिणमवानी द्रढ टेबधी ते पुद्गल जडमां कारण पद उत्पन्न करी अशुद्ध परिषामे परिणमुं छं, तेथी आत्मिक शुद्ध कार्य करवामां आत्म वीर्य श्रस्यंत हीन थइ रहो बुं, अर्थात् अनंतज्ञान अनंतदर्शन अनंतसुखरूप अनुपम आत्म व्यक्तिथी रहित कंगाल बनी अत्यंत पराधिन, दरिद्र - दयामणि अवस्थाने भोगवुं हुं पण हे प्रभु ! तमे तो अनंत ज्ञान वीर्यना परिपूर्ण पणाथी - पूर्ण व्यक्तिथी सहजं,
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