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भयभीत छे एवा सम्पद्रष्टी जीवोज अस्मिा वर्ती शकवाने , समर्थ "(पढनं नाणं तउं. दया)" जे जे अंशे अहिंसाभावमा बर्से छे सेने सेटला अंशे च हिंसक काहिए माटे चोथा गुणस्थानथी मांडी पला उपला गुणस्थामोमा सिकदशा • य प्रमाण अधिकी अधिकी पते छे पण हे भगवत ! भाप हिंसामा सबै कारपोथी र बत्ती होबाथी सर्वोत्कृष्ट तथा सर्वदा शिक्षक भावमा वों, छो राग द्वेष रहिन छोपाथी सर्वे जीयो ऊपर एक सरखी री द्या राखोलो, तेथी सर्वे दयालु जीवोमा पाप राजा लमान शिरोमणि छो, सेथी घासराय श्री गसंषर स्वामी ! करुणा निधान तथा समर्थ जाणी आप प्रति विनंती उचारं; कारण के दयालु तथा समर्थ होय तेज सेषकनी विनंति मनोर्थने परिपूर्ण करे बाटे भुज छेवकनी विनंती करुणा भावे चित्तमा धारी-"ए परपरिणति रंगथी मुजने नाप उगार". हे नाथ! हे स्वामी ! पनादि विभाष वशे पुद्गला पर्याय जे शरीरादिक मां अपणुं मानी ऊपर सत्यंत राता करीला तीन धा ग्धो छ नशा से भारी