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'मिथ्यात्व, अविरति, कषाय, प्रमाद तथा योगेनुं सेवन करवू ते हिंसानां कारणो के ते कारणो सेववाथी हिंसा थाय के कडुछे के कारण जोगे कारज निपजेरे, एहमां कोई न वादापण कारण विणु कारज साधीए रे, तेनिज मति ऊन्माद” एम स्यावाद नय युक्त जिन प्ररूपित द्रव्य हिंसा तथा भावहिंसाना स्वरूपथी अजाण तथा तेना कारणोथी अजागा मिथ्याद्रष्टी जीवो एक समय मात्र पण अहिंसाभाधमां वत्ती शकवाने असमर्थ छ तथापिं मोहमद्यमां बेभान थयेला हिमामा वतता छतां हमे दया पालीए छीए-दयालु छीए एम पोताना जीव्हाथी जल्पना तथा मनर्मा कल्पना करे छे पण तेथी शुं सांची दया पाल्या
। परमोत्तम फल मोक्ष सुखने पामी शके नहि । ' पण जे स्थाबाद नय युक्त जिन प्ररूपित द्रव्य. हिंसा तथा भावहिंसाना स्वरूपर्नु तथा तेना कारपोर्नु सम्यकज्ञान धरावे बे-जे परमोत्तम फलना उत्सुक छ हिंसानु फल जे भवभ्रमण तेथी उदिन
शिवाय