________________
- आतम गुण निरमल नीपजतां, ध्यान समाधि स्वभावे ॥ पूर्णानंद सिद्धता साधी, देवचंद्र पद पावरे स्वामी० ॥ ९ ॥ - अर्थ- शुद्ध साध्य सन्मुख लक्ष राखी (यस्मात् क्रिया प्रति फळन्ति न भाव शुन्या) धने शुक्लध्यानन सेवन करता तजन्य समाधिमां लीन थतां यात्म गुण निर्मल अर्थात् मल रहित परमपवित्र थाय. एम पूर्णानंदमय सिद्ध पद साधी देवमां चंद्रमा समान अर्थात् देवाधिदेव पदने प्राप्त थइए ॥६॥
॥अथ द्वितीय श्री युगमंधर जिन स्तवन ।। नारायनी देशी ॥ - श्री. युगमंधर विनवुरे, विनतडी अवधाररे दयालराय ॥ ए पर परिणति रंगारे, मुजने नाथ उगाररे ॥ द. श्री० ॥१॥
अर्थ-प्राणातिपात विरमण, मृषावाद विरमण.
.
.