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________________ १४ अदत्तादान विरमण, मैथुन विरमण तथा परिग्रह संग्रह विरमण रूप पंचमहाव्रत तथा क्षांति, मार्दव, आर्यष, मुंत्ति, तप, संयम, शौच, सत्य, अकिंचन तथा ब्रह्मचर्य धादि सर्वे धर्मीमा अनुवृत्ति धरावनार अहिंसा-दया धर्म छे. जेमा सर्वे धर्मनो समा. वेश थइ जाय छे. उक्तंच-सव्वाउंांब नइउं, जह सायरंमि निवडंति । तह भग, वई अहिंसिं, सव्वे धम्मा समिल्लन्ति ॥ तथा जेने सर्व मतावलंबीउ स्विकारे छे-सन्माने के "अहिंसा परमो धर्म, हिंसा सर्वत्र गर्हिता” परन्तु जैन शिवाय अन्य मतावलंबीउ अहिंसा-दयामां घर्ती शकता नथी कारण के तेउ हिंस्य हिंसा तथा हिंसाना कारणोने यथार्थ संपूर्ण उलखता नथी. । सर्वज्ञ तीर्थंकर देव द्रव्याहिंसा तथा भावहिंसा एम हिंसाना बे प्रकार प्ररूपे छे-पृथ्वीकाय, अपकाय, तेजस्काय, वायुकाय अने वनस्पतिकाय एम पंच स्थावरकायिक एकेंद्रि जीवो तथा थेंद्रिय प्रादि प्रस जीवोनां पांच इंद्रियो, मनोपल, वचनबल, कायवन,
SR No.010575
Book TitleViharman Jina Stavan Vishi Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
PublisherSukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
Publication Year1965
Total Pages345
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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