________________
१६. भव भय टेवरे स्वामी ॥ वि० ॥७॥
अर्थ-श्री सीमंधर देवमां साध्य पद पूर्ण पणे प्रगट होवाथी तेज पुष्ट-अनुपम निमित्त हेतु छे (साध्य साध्य धर्म जेमाहे होवे रे ते निमित्त . अति पुष्ट, तथा च-पुष्ट हेतु जिनेंद्रोय, माक्ष सद्भाव साधने) तथा सर्वज्ञ अने चीतराग होवा थी प्राप्तमोक्षमार्गना साषा उपदेशक तथा सर्वे प्रास्मरिद्धि संपूर्ण पणे प्राप्त होवाथी परम भाधार भव समुद्रमा वृडता भव्य प्राणीयोने जहाज समान, भवाटवीमां सथ्थवाह समान छे. न्याय, पूर्वक एम सिद्ध होवाथी तेउनी भक्ति करीये अर्थात् तेमनी धाज्ञा भापणा शिर उपर चढावीए सन्मानीये. कधु के के "आणाकारी भत्ता, आणा - छेइऊ अभत्तात्ति" माटे तेमनी माणा प्रमाणे वर्तीए. मिथ्यात, अज्ञान, कषाय, प्रमाद, अविरति रूप भयंकर भष भ्रमपनी टेषनो त्याग-परिहार फरीये ॥७॥
शुद्ध दबे अवलंबन करता, परिहरीये