________________
थी शुद्धास्म परिणति ज्ञानावरणादि दुष्ट अष्ट कर्मव अपराय छे-व्याघात पामे छ एम शुद्ध परिणतिनो वियोग रहे छे ॥३॥
जे विभाव ते पण नैमित्तिक, संतति भाव अनादि । परनिमित्तते विषय संगादिक, ते । संयोगे सादिरे स्वामी ॥ वि०॥४॥
अर्थ-मनोज्ञ अमनोज्ञ पुद्गलीक विषयमा इष्टानिष्ट कल्पना करवाथी, धन धान्यादि सचित्त प्रचित्त मिश्र परिग्रहमा ममत्व बुद्धि ग्रहणवुद्धि करवाथी आत्मा राग द्वेष रूप विभावे परिणमे छे तेथी ते विभाव नैमित्तिक छे तथा सादि सात छे तथापि प्रवाहे संतति अनादिनी छे. जेम प्रापणे वर्तमान समये एक पुरुषने जोइये छिये ते पुरुष तेना पिताबडे उत्पन्न थयेल छे तेथी ते भादि सहित छ भने तेनो नाश पण छे तेथी ते पुरुष सादिसांत भांगे थे परन्तु ते पुरुष तेना पिताथी उत्पन्न थयो के तेम तेनो पिता पण बली तेना पिताथी उत्पन्न थयो के एम तेनो वंश अनादि सिद्ध के ॥४॥