________________
२४६ जंबु द्वीपे चार जिनेश्वर, धातकी आठ आणंदो । पुष्कर अद्ध अाठ महामुनि, सेवे चोसठ इंदोरे ॥ जिनवर० ॥ २ ॥
___ अर्थ-जंबुद्वीपमां चार, वातकीमा आठ अने पुष्क___ रार्धमा आठ एम सर्वे मली वीश तीर्थकर विहरमान
जेने महारिद्धिना धारक एवा. चोसठ इंद्रो पण सेवे छ ॥ २ ॥
केवली गणधर साधु साधवी, श्रावक श्राविका बंदो। जिन मुख धर्म अमृत अनुभवतां, पामे मन आणंदोरे ।.जिन० ॥ ३॥
अर्थ:-श्री तीर्थ करना मुख कमलमांथी वहेता अमृत समान वचनोने अनुभवतां तेनो आस्वाद लेता केवली गणधर सासु साधवी श्रावक श्राविका सम्यद्रष्टी जीवो शद्ध अानंदमां मग्न रहे छ ।। ३ ॥
सिद्धाचल चोमास रहीने, गायो जिनगुण छंदो ॥ जिनपति भक्ति मुक्तिनो मारग, अनुपम शिवसुख कंदोरे ॥ जिन० ॥४॥
अर्थ:-सिद्धाचल क्षेत्रमाँ चोमासु रहीने जिनेश्वरना पवित्र गुणोनु जेमां वखाण छ एवा छदो (स्तवनो)