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२२८ तथा पोताना नैरुपा धिक सहज स्वतंत्र भोगना विलासी धया छो तथा प्राप ज्ञानानंदे परिपूण सदा उपयोगवंत अर्थात् पोताना. राज्यनी संभालमां निरंतर वर्तो छो ॥६॥ , आचारिज उवझाय, साधक मुनिवर हो देश विरत धरुजी । आतम सिद्धि अनंत, कारण रूपे रे योग क्षेमकरूजी॥ १० ॥७॥
अर्थः-ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार अने वीर्याचार, ए पंचाचारमा वर्तनार तथा शिष्यजनने तेषां वर्तावनार (जोडनार) एहवा छत्रीशं गुणवान् श्रीआचार्य, तथा सूत्रपाठना दातार श्री उपाध्याय, तथा पोताना शुद्धात्मतस्वने साधनार श्री मुनिराज, तथा पंचम गुणस्थानवी देशव्रत धारीऊ, ए सर्वे श्राप महाराजनी आज्ञामा वर्तनार, पोताना मनवचन कायायोगने सयममां वर्तावनार होवाथी अनंत अात्म सिद्धि-. रुप आप समान राज्य भोग पामवाना कारण छे अर्थात् तेऊ अल्पकालमा श्राप समान शिवभूमिर्नु राज्य प्राप्त करशे तथा ते प्राचार्यादिकोने शिवभूमिर्नु राज्य प्राप्त करवामां आप भगवंत कारणरुपे