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________________ २२३ पराक्रम अक्षय, अजय तथा अपरिसीम छे, श्रापे सर्व कर्मशत्रुउनो सपरिवार नाश को छे, निवंश कर्या छे तेथी हवे कोइपण आपना राज्यमा विघ्न करी शके तेनं नथी तथा आपनी अनंत पर्यायरुप प्रजा, अत्यंन सरल पंडित तथा सदाचरणी छे, मापना धर्मरुप कायदानो जरा पण भंग करे तेम नथी, आपना सर्वे धर्म कायदा संपूर्ण न्याय तथा दया युक्त होवाथी सदा सर्वत्र अभग छे; एम भाप सर्वोत्तम राजापणे विराजो छो, श्रापना राज्यनी वलिहारी छे. ॥१॥ कर्ता भोक्ता भाव, कारक कारण हो तुं स्वामी छतोजी । ज्ञानानंद प्रधान, सवे वस्तुनो हो धर्म प्रकाशतोजी ॥ ९० ॥ २॥ अर्थः-वली से पर्यायरुप प्रजाना उत्पन्न कर्ता पण आपज छो तथा तेना उपादान कारणरूप पण आपज छो, तेना अधिकरणादि अन्य कारको पण भापमांज अभेदपणे शोभे छे तथा ते प्रजाने सदाचरण युक्त-न्यायानुसार गमन करनार निरखी तजन्य राज्यानंदना भोक्ता पण आपज छो. ते सर्वे प्रजामा शिरोमणी, भादरणीय तथा
SR No.010575
Book TitleViharman Jina Stavan Vishi Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
PublisherSukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
Publication Year1965
Total Pages345
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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