________________
२२२ देवचंद्र जिनचंद्र, पूर्णानंदनो वृंद ॥ आज हो जिनवर सेवाथी चिर आनंदियेजी॥ ८॥
अर्थः-स्तुती कर्ता श्री देवचंद्र मुनि कहे के सर्व जिनोमां चंद्रमा समान बर प्रधान हे वीरसेन प्रभु ! स्वाभाविक, निःप्रयालिक, अनंत आनंदना समूहरूप प्राप जिनेश्वरनी श्राज्ञा सेवनरुप सेवाथी हुँ पण आप समान अनंत परमानंदने प्राप्त थइश; शिवकमलानो विलासी थइश. ॥८॥
॥ अथ श्री अष्टादशम श्री महाभद्र जिन स्तवनम् ।। । तर यमुनानुरे अति रलीयामणुं रे ॥ ए देशी ॥ महाभद्र जिनराज, राज राज विराजे हो आज तुमारडोजी । क्षायिक वीर्य अनंत, धर्म अभंगे हो तु साहिब बडोजी ॥ हूं बलिहारीरे श्री जिनवर तणीजी ॥१॥
अर्थ:-सर्वे जिनोमां शिरोमणी परमकल्याणना निधान हे श्री महाभद्र प्रभु ! आपनुं राज्य सर्वोपरी समाधि तथा अनंत विभूति ,युक्त निर्विप्रताए भलौकिक रीते. शोभे रे, भापर्नु, राज्य,