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१७६ पंचास्तिकायमा अनंत विशेष स्वभाव छे.
वली हे भगवंत ! आप स्वतंत्रपणे पोताना ज्ञानादिक कार्यना हमेशां कर्त्ता छो माटे आप परमेश्वर छो कारणके जीव द्रव्य शिवाय अन्य कोई पण द्रव्यमां कापणुं नथी (कर्तत्वं जीवस्य ना न्येषाम् ) कारण के " गुण सकल प्रदेशे हो के निज निज कार्य करे, समुदाय प्रवर्स हो के कर्ता भाव धरे” अापना सकल प्रदेशे रहेला अनंत गुणो पोत पोतार्नु कार्य करेछे पण ते सर्व प्रदेशे समुदाय मलीने एकठी प्रवृत्ति करेथे माटे श्राप स्वतंत्र का छो ।। २॥ जड द्रव्य चतुष्के हो के कर्ता भाव नहि, ॥ सर्व प्रदेशे हो, के वृत्ति विभिन्न कही ॥ चेतन द्रव्यने हो, के सकल प्रदेश मील ॥ गुणवर्तना वर्ते हो, के वस्तुने सहज बले ॥ ३।
अर्थः-पण हे भगवंत, ! जडद्रव्य चतुष्कमा कर्ता भाव ठरी शकतो नथी, कारणके जो के ते जड द्रव्यना धर्म प्रदेशे प्रदेशे वर्ते छे परंतु सर्वे