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स्वभाव जाणवा (गं निच्चं निरवयवमक्कियं सव्वग्गं च सामन्नं) एवा मूलंसामान्य स्वभाव छ छे-अस्तित्त्वं, वस्तुत्त्वं, द्रव्यत्त्वं, प्रमेयत्त्वं, सत्त्वं अने अगुरुलघुत्त्वं. तथा उत्तरसामान्य स्वभाव
वस्तु मध्ये अनंता छे. ते सामान्य स्वभावो सर्व __ द्रव्यमां सर्वे समय निज परिणामीकताए परिणमे
छे, तेथी हे भगवंत ! अापना सर्व सामान्य स्व. भावो सदाकाल असहाये परिणमे छे अने हे भगवंत ! अापना सर्व विशेष धर्म पोताना परम गुणने अनुयायीपणे परिणमे छे. ययुक्तं-भिन्न भिन्न पर्याय प्रवर्तन स्वकार्य करण सहकार भूताः पर्यायानुगत परिणाम विशेष स्वभावाः " वस्तुमा जे भिन्न भिन्न पर्याय छे तेनुं कार्य कारण पणे जे प्रवर्तन तेना सहकारभृत जे पर्यायानुगत परिणामी एवा जे स्वभाव से विशेष स्वभाव छे.
जीव द्रव्यमां ज्ञायकता कता भोक्तता ग्राहकता आदि अनंत विशेष स्वभाव छ, तेमज धर्मास्तिकायमांगमन सहकारतादि,अधर्मास्तिकायमां स्थिति सहकारादि,माकाशास्तिकायमां अवगाह: दानादि, पुद्गलास्तिकायमा पूरणगलनादि, एम