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________________ १६६ हठ छोडी, परमार्थ समजी, शुद्ध साध्य तरफ लक्ष राखी शुद्धात्म पद् जेथी सिद्ध थाय एहवो प्रशस्त व्यवहार प्रादरी, आपणा पास्माने अत्यंत परमानंदमय परमात्मपदमा स्थित करो ॥६॥ तत्वरसिक जन थोडलारे, बहुलो जन संवाद ॥ जाणो छो जिनराजजीरे, सघलो एह विवादरे ॥ चंद्रानन० ॥ ७॥ अर्थः-हे चंद्रानन प्रभु ! श्रा दुषमकालमां अमारा भरतक्षेत्रमा सद्गुरुनी विरलता बडे शुद्धात्म तत्त्व साधवाने रसिधा पुरुषोनी संख्या तो रस्न मणिनी पेठे अतिशय अल्प, अने पोतानो मत कदाग्रह स्थापन करवाने तत्पर एहवा काचना कडका जेवा पुरुषो घणा, एवी अमारी दयामणी दशानुं वर्णन हे जिनेश्वर, ! आप सर्वथा जाणो छो ॥७॥ . नाथ चरण वंदन तणोरे, मनमां घणो उमंग ॥ पुण्य विना किम पामीएरे, प्रभु सेवननो रंग रे ॥ चंद्रानन० ॥ ८ ॥ अर्थः-देवाधिदेव श्री तीर्थकरनां चरणकमल के
SR No.010575
Book TitleViharman Jina Stavan Vishi Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
PublisherSukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
Publication Year1965
Total Pages345
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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