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कहे छे–“संजम रहियं लिंगं, दसण भट्ट न संजमं भणिय, आणा हीण धम्म, निरत्यय होइ सव्वंपि" तथा "जो पूइड्डइ देवो, तव्वयणं जे नरा विराहंति; हारंति वोहि लाभ, कुदिष्टि राएण अन्नाणी" तथा “पूत्रा पचरकाणं, पोसह उववास दाण सीलाइ; सव्वपि अणुट्ठाणं, निरस्थयं कणय कुसुमव्व" तथा श्री धर्मदास गणी उपदेशमालामा कहे छे. "प्राणाइच्चिय चरण, तम्भंगे ज्ञाण किन्न भग्गति, श्राणं च इक्कतो, कस्साएसा कुणइ सेस; निश्चये आज्ञा एज चारित्र छ अर्थात् जिना. शानुं पालवु एज चारित्र छे. तो जेणे जिनेश्वरनी भाज्ञा भांगी तेणे शु न भांग्यु ? हे प्राणी, जो तुं जिनेश्वरनी श्राज्ञाने उलंघन करे छे तो तुं कोना
आदेशथी क्रियानुष्टान करे छे। तथा उपदेश सिद्धांत रस्नमालायाम्-" जगगुरु जिणस्स वय, सयलाण जियाण होइ हिय करणं; ता तस्स विराहणया, कह धम्मो कहणु जीवदया" जगत्गुरु श्री जिनेश्वरन वचन सर्वे जीवोने हित करनार छ तो ते वचनने विराधता केवो धर्म अने केवी जीव
दया ? ॥५॥ • गच्छ कदाग्रह साचवेरे, माने धर्म प्रसिद्ध;