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________________ १५४ अर्थात् माटीने चक्र ऊपर मूकी तेमांथी स्थास कुसल बुध्नादि पर्यायो निपजावे नहि तो कोइ पण काले घट सिद्ध थाय नहि. पण जो ते घट सिद्ध करवा तरफ लक्ष स्थापी स्थास कुशल वुध्नादि पर्यायो उपजाववामां दंड चक्रादिनो योग्य व्यापार करे तो अवश्य घट सिद्धि करी शके अने स्यारेज तेनो दंड चक्रादिनो सर्वे व्यापार सफल कहेवाय तेमज भवभ्रमणथी उद्विग्न थएल भव्य जीव शुद्धास्म भाव सिद्ध करवानी रुचि धरी ते तरफ पुरतो लक्ष अापी गुणस्थान प्रमाणे योग्य व्यवहार प्रादरे अर्थात् प्रथम समकीत गुण प्राप्त करवानो व्यवहार श्रादरे कारण के ते मोक्षनुं प्रथम पगथीले "जिन पणत्तं धम्म, सद्दहमाणस्स होई रयण मिण ॥ सारं गुण रयणाणय, सोवाणं पढम मोरकस्ल" पछी देश विरति सर्वविरती थवानो व्यवहार आदरे, पछी अप्रमत्तादि गुण स्थान प्राप्त थवानो योग्य (आगम प्रणीत व्यवहार प्रादरे तो केवलज्ञानादि अनुपम लक्ष्मीनो स्वामी थाय, पोतानुं भजर अमर शुद्धात्म (निर्वाण) पद् प्राप्त करे. अने तेम करता तेनो व्रत तप पञ्चखाण प्रतिक्रमणादि सर्व व्यवहार सफल कल्याणकारी कहे
SR No.010575
Book TitleViharman Jina Stavan Vishi Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
PublisherSukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
Publication Year1965
Total Pages345
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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