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निबंध, एकांतिक; भास्यंतिक अने स्वतंत्र समाधिमय श्री विशालस्वामीना' अरिहंत पदने आपको मात्मा निर्मल करी भव भ्रमणथी मुक्त थवा निमित्त वंदी ये-तेमां लीन थइए, वली श्री विशाल स्वामी के जे-ज्ञानादि अनंत लक्ष्मीना स्वामी तथा जन्म जरा मरण तथा क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति,, भय, शोक, जुगुप्सा विगेरे कषाय, अज्ञान जलथी भरपूर था अपार पारावार भयंकर भव समुद्रथी उद्धारी अचल. अव्याबाध अरुज प्रास्मीय अनंत, सुखना स्थानक मोक्ष महेलमां धरनार, सर्व प्राणीउना अघातक, करुणा सागर, तथा अनंतगुणना पात्र महान् धर्मात्मा छे तेमने स्तवो-स्तुति करो तेमना गुणोनुं गान, स्मरण, चिंतन, अनुभव करो. ॥१॥
भव उपाधि गद टालवा, प्रभुजी छो वैद्य अमोघरे ॥ रत्नत्रयी औषध करी, तुम्हें तार्या भविजन उपरे ॥तुम्हें० ॥अरि०॥२॥
अर्थः-महान् दुष्ट शत्रुरूप कर्मराजाना भवख्य कारागृहमां वसतां अज्ञान कषाय भने मिथ्यात्व. रूप मिथ्याभाहार विहारना सेवनथी, भास्म