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१२५ । ध्यायो-राग द्वेषादि सकल विभावथी भास्म परिणामने वारी तदनुगत करो. " चिदानंद रस अनुभवी " केवल ज्ञान वडे त्रैकालिक पर्यायो सहित सर्व द्रव्यना युगपत् प्रत्यक्ष ज्ञाता होवाथी पोताना भास्म द्रव्यने सर्वदा अखंड भव्यायाध ज्ञानदर्शनादि गुणे सदा परिपूर्ण, कोइपण द्रव्य जेने कोइपण काले बाधा करी शके नहि माटे भषाधिन जुए छे; तेथी तज्जन्य निर्भयता-निराकुलता स्वाधीनतामय ज्ञानानंद रसना अनुभवीभास्वादन भोग लेनार श्री विशाल देवनी तत्त्व समाधि सहज अर्थात् स्वाभाविक सर्व पर द्रव्यनी अपेक्षा वगर मात्र पोतानाज द्रव्यथी उत्पन्न, तथा प्रकृत-पर द्रव्ये जेने उत्पन्न करी नथी एवी, तथा निरूपाधि अर्थात् पौदुगलीक विषयो भोगवतां अनेक प्रकारनो शारीरिक तथा मानसिक व्याधि उपजे छे, पर रमणरूप मिथ्या चारित्र होवाथी आत्मगुंण घातक अनेक प्रकारनां दुष्ट कर्म बंधाय छे पणं श्री विशाल देवनी समाधिमां कोइपण प्रकारनी -उपाधिनो सदभाव तथा उपजवानो संभव नथी तेथी निरुपाधि छे माटे हे गुणानुरागी भव्य जीवो ! निरुपचरित, निस्संग, निःप्रयासिक,