________________
शुद्ध निमित्त रमे जब चिधनकर्ता भोक्ता घरनो।
शुद्ध देव आलंबन करतां___ परि हरिये पर भाव ।।
आतम गुण निर्मल नीपजतां
ध्यान समाधि स्वभावे । पूर्णानंद सिद्धता साधी
देवच द्र पद पावे ॥ विषमता मिटने पर आत्मगुणों में निर्मलता होने से ध्यान समाधि प्राप्त होती है। उसीसे पूर्ण श्रानन्द की सिद्धि होती है। तभी आत्मा परमात्मा हो जाता है।
दूसरे श्रीयुगमंधर प्रभु के स्तवन में कत्तु त्व-कारण और कार्य की चर्चा बड़े सुन्दर भावों में निरूपित की गई है। ईश्वर कत्तत्व को न माननेवाले जैन दर्शन की पुण्य पद्धति इन्हीं शब्दों में श्रीमान ने बताई है---
कार्य रुचि को थये रे कारक सवि पलटाय रे । दयाल । आतम गते आतम रमे रे,
निज घर मंगल थाय रे । दयाल । कर्ता--आत्मा मोक्ष कार्य की सचिवाला होता है, तभी सभी कारक आत्म रूप हो जाते हैं। आत्मा जब आत्मा में