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उपर लीपण जेवा जाणषा. “भाव शून्या क्रिया न फलन्ति इति” अथवा एकडा विनानां मीडा जेवा जाणवा. पण जो भावधर्मनी सापेक्षताए "होय तो एकडा उपरन मीडांनी माफक गुणकारी छ. ॥८॥
श्रद्धा भासन हो तत्व रमण पणे, करतां तन्मय भाव ॥ देवचंद्र जिनवर पद सेवतां, प्रगटे वस्तु स्वभाव ॥ स्वामी० ॥ ९॥ .
अर्थः-शुद्धात्म तत्त्वनी श्रद्धा अर्थात् जो हुँ जिन प्ररूपित सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चारित्र रूप धमै अादरूं तो हुँ पण शुद्धात्म तत्त्वनो 'भोगी थई शकुं. एम श्रद्धा करे, नय निक्षेप प्रमाण युक्त एम जाणे, तथा ते शुद्धात्म तत्त्वनेज पोतार्नु रम्य जाणी तेमांज रमण करे, परद्रव्यादिमांथी रमणता टाले, तो श्रात्म स्वभावमांज तल्लीन थायतद्रूप थाय. श्रीमान् देवचंद्र मुनिवर कहे छे के एम जिनेश्वग्ना द्रव्यचरण भावचरणने सेवतां “आपणो श्रास्म स्वभाव संपूर्ण शुद्ध प्रगटे, परमानंदनी प्राधि थाय, ॥६॥ .