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अरति भय शोक जुगुप्सा पुरुषवेद स्त्रीवेदनपुंसकवेद चौद अभ्यंतर परिग्रह, एम बाथ अभ्यंतर परिग्रहथी सर्वथा रहित होषाथी निःसंगछो. तथा 'ज्ञानानुयायी सर्वे धर्मो संपूर्ण शुद्ध निर्मल होबाथी
परमात्मा छो. तथा संसार अवस्थामा कर्म संयोगे 'शरीरमा लोली भूतपणे वसी शरीर रूपे पुद्गल रूपे संसारी जीव पोताने माने के पण भाप तो शरीरथी सर्वथा अतित थयाको सथी मात्र ज्ञानरूप-ज्ञानमूर्सी छो तथा पुद्गल भोगनुं रमण तजी आप पोताना शुद्ध ज्ञान दर्शनादि गुणोमा रमण फरवावाला भात्म भोगी छो, शुद्ध स्वाधीन भविनश्वर रम्यमा रमण करो को तेथी प्रापर्नु रमण संपूर्ण भने अविनश्वर होवाथी सिद्धपद धारण करे छे ॥६॥
एहवो धर्म हो प्रभुने नीपन्यो, भाख्यो एहवो धर्म ॥ जे आदरता हो भवियण शुचि हुवे, त्रिविध विदारी कर्म ॥ स्वामी० ॥७॥
अर्थः-एम प्रभु ! मापना ज्ञानादि सर्वे धर्मो कर्म मलथी रहित शुद्ध प्रगट थया. अचल,