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नयी तथा स्वाधीन अने. सहज, होवाथी भय आकुलता स्पृहाः रहित ने तेथीभापनोज श्रानंद एकांतिक: आत्यंतिक पूर्णपदने योग्य . जगत्-जीवनो अानंद तो साचो श्रानंद नथी,'अज्ञान वशे श्रानंद मनाय छे. एम प्रास्मगुणनी संपूर्णः शुद्धता, कर्तृता, भोक्तृता, परिणामीकता, ग्राहकता, व्यापकता आदि तेज आपनो अनुपम सिद्ध स्वभाव छे.. हवे, कईपण कार्य करवानुं शेष नथी, कंईपण भादवानुं तेम छोडवान बाकी नथी तेथी अचल श्रयाधित शाश्वत परमानंदना स्वामी छोः ।। ५ ।। "अचल अबाधित होजे निःसंगता, परमातम चिद्रप ॥ आतमभोगी हो रमता निजपदे, सिद्ध रमण ए रूप ॥ स्वामी० ॥ ६॥ ... । अर्थः-अात्म परिणामने चल करनार जे राग देष मोह परिणाम तेनो. सर्वथा अभाव होवाथी अचल, तथा श्रात्म परिणामने शुद्धपणे परिणमवामां 'घात, स्खलना करनार ज्ञातावरणादिक घातीकर्मनो अभाव होवाथी अबाधित छो तथा धन धान्य क्षेत्र वस्तु हिरण्य श्रादि बाह्यः परिग्रह तथा मिथ्यात्व क्रोध मान-माया लोभ हास्य रति