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विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा।
एक मोटी पहचान बताते है । ज्ञानगुण आत्माका है, यह बात तो आपकी समझमे आगई है। इसीसे विचारिये कि ये क्रोधादि ज्ञानके शत्रु हे या मित्र हे ? आप क्या कहेंगे. बतावें ?
शिप्य जरूर यह बात ठीक है कि ये क्रोधादि ज्ञानको विकारी बना देने है, ज्ञानकी उन्नति नहीं करने देते. इससे ज्ञानके शत्रु है।
शिक्षक-बस इनके विरोधी गुण क्षमा. मृदुता, सरलता, मंतोष है। ये आत्माके गुण हे, इनहीको हम जाति या शातभावके नामसे पुकारते हे । आप विचार करिये. जब गाति होती है तब ज्ञानका विकाश होता है। शातिमे ज्ञान निर्मल रहता है. इसी कारणमे बुद्धिमान लोग एकातमे बैठकर ज्ञानाभ्यास करते है, पुस्तकोका मनन करते है. जिससे ज्ञानका लाभ लेने हुए फ्रोधादि तीन न होजावें । शातिके होते हुए ज्ञान प्रफुल्लित रहता है इसलिये गातिको आत्माके ज्ञानका मित्र मानना ही पडेगा। अर्थात् शाति भी आत्माका एक गुण है। क्रोधके आवेगमे बडे २ ज्ञानी अनुचित शब्द बोलने लगते है. मानके मढमे बडे २ विकारी बन जाते है, ज्ञानको भूल भी जाते है। मायाचारीका ज्ञान विकारी होजाता है। लोभके जोरसे बडे २ ज्ञानी भी चोरी, बेईमानी आदि करने लग जाते है। इसलिये क्रोधादि आत्माले गुण नहीं है किन्तु शात भाव आत्मावा गुण है। एक मानव थोड़ी देर क्रोध करके थक जायगा लेकिन शातभावको विना किसी , कष्टके दीर्घकाल तक रख सक्ता है। जैसे जलका स्वभाव शीतल है वैसे आत्माका स्वभाव शात है। (Peacefalness) शाति भी इस आत्माका एक गुण है, इसे कमी भी भूलना न चाहिये।