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मैं कौन हूं।
[११ जगतमें भी यही प्रसिद्ध है कि इसने विद्यामें बहुत उन्नति की ।। उन्नति शब्द वहींपर आता है जहा शक्ति अप्रगट हो वह प्रगट हो जावे । यह रत्न चमक गया इसके अर्थ यही है कि रत्नमें चमकनेकी शक्ति थी ही. शानमें घिसनेसे ऊपरका मेंल कट गया, रत्न चमक उठा। यही बात ज्ञानके प्रकाशमे है। एक आत्माके ज्ञानकी उन्नतिकी कोई सीमा नहीं होसक्ती है। जितना२ साधन मिले उतनार इसके ज्ञानका विकाश होता जाता है। कोई२ आत्माको अल्पज्ञानी ही मानते है। जब हवाई विमान नहीं निकले थे. वेतारका तार नहीं चला था तब वे लोग यही जानते थे कि आत्माको कमी ऐसा ज्ञान हो ही नहीं सक्ता है। अब इन आविष्कारोको देखते हुए उनको मानना पड़ेगा कि वे मूलमें थे। वास्तवमें हरएक आत्मा परमात्माके समान स्वभावसे सर्वज्ञ है या पूर्ण ज्ञानकी शक्ति रखता है, विना ऐसा समझे हुए ज्ञानका प्रकाश नहीं बन सकेगा।
शिष्य-आपकी वात मेरी समझमें बहुत अच्छी तरह आगई। असलमे ज्ञानका भीतरसे ही विकाश होता है । क्योंकि इसका अमर्यादित विकाश हो सक्ता है इसलिये आत्माके भीतर पूर्णजानकी शक्ति अवश्य मानना पड़ेगी।
शिक्षक-इसीतरह आपको मानना होगा कि आत्माका स्वभाव शीतल व गांतिमय है। यह स्वभावसे क्रोधी, मानी, लोभी आदि नहीं है। क्या आप क्रोध मान माया लोभको दोष समझते है या गुण ?
शिष्य-मै क्या सारी दुनिया क्रोधादिको दोष मानती है।
शिक्षक-वास्तवमें क्रोधादि विकार है, दोष हैं, उपाधिये है। ये क्रोधादि कभी भी आत्माके स्वभाव नहीं होसक्ते हैं। हम आपको