SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 236
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१६] विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा। खेदको नहीं पाता है। श्री अमितगति सामायिकगठमें कहते हैसर्व निराकृत्य विकल्प जालं संसारकान्तारनिपातहेतुम् । विविक्तमात्मानमवेक्ष्यमाणो निलीयसे वं परमात्मतत्वे ॥२१॥ ___ मा०-संसारवनमें गिरानेवाले सर्व विकल्पोंके जालको दूर करके अपने आत्माको सर्वसे भिन्न२ अनुभव करता हुआ तु एक परमात्माके स्वरूपमे लीन हो। वैराग्यमणिमालामे श्रीचंद्रजी कहत हैंमुंच परिग्रहहन्दमशेपं चारित्रं पालय सविशेष । कामक्रोशनिपीलनयंत्रं ध्यानं कुरु रे जीव! पवित्रं ॥२१॥ भावार्थ-हे जीव ' सर्व परिग्रह समूहको त्याग यथार्य चारित्रको पाल। काम, क्रोधके दूर करनेको यंत्रके समान पवित्र व्यानको कर। विरमविरम वाह्यादि पद ये रम रम मोअपदे च हितार्थे । कुरु कुरु निज कार्य च वितंद्रः भवभव केवलबोध यतींद्रः ।। मुंच मुंच विपयामिपभोग लुप लुप निजतृष्णारोग । रुंध रुंध मानस मातंगं धर धर जीवविमलतरयोग ॥६९॥ ___ भावार्थ-बाहरी मन पदार्थोसे विरक्त हो, विरक्त हो. परम हितकारी मोक्ष पढमे रमणकर रमणकर. आलस्य त्यागकर आत्मीक कार्यको करले करले, केवलज्ञानका धारी अरहंत होजा होजा, इन्द्रियोंकी अभिलाषारूपी मासके भागको छोड छोड, अपने भीतरके तृष्णामई रोगको दूरकर दूरकर, मनरूपी हाथीको रोक रोक, अत्यंत विमल योगाभ्यासको धार धार। श्री देवसेनाचार्य तत्त्वसारमे कहने हे
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy