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________________ २०० ] विद्यार्थी जैन धर्म शिक्षा । l जीत सके उसको ग्यारहवी प्रतिमा व्रत श्रावकके व्रत पालने चाहिये, विना बालक सम प्राकृतिक पमें हुए मावुका चारित्र नहीं होमक्ता है । निग्रंथ उसे कहते हे जो सर्व परिग्रहका त्यागी नग्न माधु हो । श्वेताबरोंका कहना है कि जो नग्न रह सक्ता है वह नग्न रहे, उसे जिनकरूपी साधु करेंगे व जो नग्न नहीं रह सक्ता है वह ब रखखें, उमे स्थविरकल्पी साधु कहेंगे। यह भी उनका कहना है कि जैसे शरीर रक्षा के लिये भोजन आवश्यक वैसे वस्त्र भी अवश्यक है तथा जब साधुका व्यान अविक चढंगा तब उसका भाव जिस तरह शरीर से ममता हटा लेता है वैसे बासे भी ममता हटा लेगा । इसलिये व सहित होते हुए भी परिणामोंकी उन्नति होसक्ती है, छठा सातवा आदि गुणस्थान होसकता है तथा वह अरहंत भी होसकता है । शिष्य - श्री महावीर स्वामीने किम तरह दीक्षा ली थी ? शिक्षक - श्री महावीरस्वामीने नग्न होकर दीक्षा ली थी ऐसा दिगम्बर श्वेतावर दोना मानते हे । उ० इतना कहते है कि इन्द्रने एक देवदूण्य वस्त्र कवेपर डाल दिया था । वह एक वर्ष एक मास तक पड़ा रहा, फिर वह गिरगया । पीछे १३ मान कम बारह वर्ष तक महावीर स्वामीने नग्न ही तप किया । शिष्य - नया उनके ग्रथका कोई वाक्य आप बता सक्ते हे ? शिक्षक - उनके माननीय श्री आचारागसूत्रमे नीचे लिखे वाक्य आए है संवच्छरं साहियमासं, जं न रिक्कासि वत्थगं भगवं । अचेलओ तभोचाई तं वोसिज्ज वन्थ मणगारे ॥ ४ ॥
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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