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विद्यार्थी जैन धर्म शिक्षा। . ) अनर्थ दंड विरतिक पांचं अतीचार-(१) कंदर्प-रागकी तीव्रतासे भंड वैचन वकना, (२) कोय-मड बनाक साथ कायकी कुचेष्टा भी करनी, (३) मोग्वर्य -वृथा बहुत बकवाढ करना, (४) असमीय अधिकरण--प्रयोजन विना काम करना; (५) उपभोग परिभोगानर्थक्य--भोग व उपभोगके पदार्थों को वृथा एकत्र करना। - ___ (१०) सामायिकके पांच अतीचार-(१) कायदुष्प्रणिधानशरीरकी खोटी चेष्टा कानी, (२) वाम्दुष्प्रणिधान-सांसारिक दुष्ट वचन कहना (३) मनोदुष्प्रणिधान-मनका दुष्ट भावोंमें लेजाना, (४) स्मृत्यनुपस्थान-सामायिक पाठ जप आदि भूल जाना ।
.(११) प्रोपॉपवासके पांच अतींचार-अप्रत्यवेक्षित अं. मार्जित–विना देव विमा झाडे (१) उत्सर्ग- मलमुत्रादि कर देना, (२) आढान-आबादिको उठांना, (३ मंस्तरोपक्रमण-चटाई आदि विछा देना तथा (४) अनादरे-उत्माह न रखना (२) स्मृन्यनुवस्थान-धर्मक्रियाओंको मृल जाना । ' ' (१२) भौगोपभोग प्रमाणके पांचं अतिचार-११) मचित्त-- त्यागी हुई सचित्त वस्तुको प्रमाढमे खा लेना, (२) सचिन सम्बन्धत्यागी हुई मंचित्तमे छुई हुई वस्तुको खाना. (३) नचित्त मन्मिश्र-- स्यार्गी हुई मचित्तमे मिलाकर, किसीको खाना, (४) अभिषत्र--कामोदीपक पदार्थ खाना. (५) दु पकाहार -ठीक न पका हुआ जला या कच्चा भोजन करना, जो ठीक हजम न होसके उसे खाना । 1. (१३) अतिथि 'संविभागके पांच अतिचार-यं मुनिकी अपेक्षासे है । (१) सचित्त निक्षेप -सचिनपर रखी हुई वस्तु देना