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विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा। चार गति (१९) नरक गति, (५०) नियेचगति, (५१) देवगति, (५२) मनुष्य गति। पांच जाति (५३) एकेंद्रिय, (५४) द्वंद्रिय, (५५) तेंद्रिय, (५६) चौद्रिय, (५७ ) पंचेंद्रिय । पांच गरीर (५८) औदारिक, (५१.) वैक्रियिक, (६०) आहारक, (६१) नेजस (६२) कार्मण । तीन अंगोपांग तीन गरीर हीमें अंग व उमंग बनते है । (६३) औदारिक, (६४) वैक्रियिक, (६५) आहारक, (६६) निर्माण-जिससे अंग उपंगका स्थान व प्रमाण बने । बंधन "पांच प्रकार (६७) औदारिक वं०, (६८) वैक्रियिक वं०,(६९)
आहारक व०, (७०) तैजस वं०, (७१) कार्मण बंधन । संघात पांच प्रकार-एकमेक होकर पुद्गलका मिल जाना। (७२) औठारिक सं०, (७३) वैक्रियिक सं०, (७४) आहारक सं०, (७५) तैजस सं०, (७६) कार्मण सं०। छः संस्थान (गरीरोंके आकार) (७७) समचतुरस्र संस्थान-सुडौल गरीर, (७८) न्यग्रोध परिमंडल सं०-वटवृक्षके समान ऊपर बडा नीचे छोटा, (७१) स्वाति सं० ऊपर छोटा नीचे बडा, (८०) कुजक सं०-कूबडा, (८१) वामन सं०--बौना, (८२) हुंडक सं०--बेडौल । छः संहनन (८३) वज्रपम नाराच संहनन--वज्रके समान मजबूत नोंके जाल कीले व हड्डी (८४) वज्र नाराच सं०- वज्रके समान कीले व हड्डी, (८५) नाराच सं०- दोनों तरफ कीलेदार हड्डी. (८६) अर्धनाराच सं०--एक तरफ कीलेदार हड्डी, (८७) कीलक सं०- हड्डी हड्डीसे कीलित हो, (८८) असम्प्राशासपाटिका सं०-हड्डी माससे मिली हो । आठ स्पर्श-८९) कर्कश, (९०) नम्र, (९१) गुरु--भारी, (९१) लघु--हलका, '९३) स्निग्ध-चिकना, (९४) रक्ष--रूखा, (१५) उप्ण, (९६) शीत ।