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आस्रव और बंध तत्व।
[१५१ (८) अवधि दर्शनावरण-अवधिज्ञानक पहले होनेवाले अवधि दर्शनको रोकनेवाला।
केवल दर्शनावरण-केवल दर्शन (अनंत दर्शन)को रोकनेवाला।
(१०) निद्रा-जिसके उदयसे नींद आवे, (११)निद्रानिद्राजिसके उदयसे गाढ़ निद्रा आवे, (१२) प्रचला--जिससे ऊंघ आवे (१३) प्रचलाप्रचला-जिससे वारवार ऊंघ आवे । (१४) स्त्यानगृद्धि-ऐसी नींद जिसमें स्वममें कुछ काम करले फिर सो जावे।
(३) वेदनी कर्मके दो भेद(१५) सातावेदनीय-जिससे सुखका लाभ होसके । (१६) असातावेदनीय--जिसके फलसे अनेक प्रकार दुःख हों।।
(४) मोहनीयके अहाइस भेद--हम पहले गिना चुके है। तीन दर्शनमोहके, (१७) मिथ्यात्व, (१८) सम्यक्त्व, (१९) सम्यक्प्रकृति।
पचीस चारित्रमोहके (२० )से (२४) अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ । (२५)से (२८) अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ । (२९) से (३२) प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ । (३३) से (३६) संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ । (३७), से (४५) हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुंवेद, नपुंसकवेद।
(५) आयु कर्मके चार भेद- .
(४६) नारक आयु, (४७) तिर्यच आयु, (४८) मानुष आयु, (४९) देव आयु।
(६) नाम कर्मके ९३ भेद -जिनके फलसे शरीर बने ।