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विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा । (८) संयम-असंयम ।
(९) दर्शन-अचक्षुदर्शन क्योंकि यह स्पर्शन इन्द्रियसे ही सामान्यपने जानता है।
(१०) लेश्या-तीन होसक्ती है-कृष्ण, नील, कापोत । (११) भव्य-भव्य, अभव्य दोमेंसे एक होसक्ता है । (१२) सम्यक्त-मिथ्यात्व है। (१३) सनी-असैनी है। (१४) आहारक-आहारक है, स्थूल पुद्गलोंको लेरहा है।
शिष्य-बहुत ठीक बताया। अच्छा, एक व्रती श्रावकके जो देशविरत गुणस्थानमे है चौदह मार्गणाएं कह जावें ।
शिक्षक-मैं कहता हूं(१) गति-मनुष्य गति। (२) इंद्रिय-पचेंद्रिय । (३ काय-त्रसकाय । (४) योग-तीनों। (५) वेद-तीनों भावोंकी अपेक्षा । (६) कषाय-चारो कषाय । (७) ज्ञान-मति, श्रुत, अवधि तीनों संभव है। (८) सयम--देश संयम एक । (९) दशन-चक्षु, अचक्षु अवधि तीनों संभव है। (१०) लेश्या-तीन शुभ होंगी। (११) भव्य-भव्य जीव है, अभव्य देशव्रती नहीं होसक्ता है।