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________________ व्यवहारिक है । वे कहते है कि नही माया के इन चारों रूपों को neutralize कर दो। बिजली का करेण्ट नभी तक है जब तक positive और negative है । मब यदिpositive हो जायं तो करेण्ट नही बनेगा और कुल शक्ति neutralize हो जायगी। महावीर कहते है कि इम वान को पहचानो। अपना स्वार्थ जो शभ होनो भी उमे दूमरों के स्वार्थ के ममतल रखो। इन दोनों के बीच बमे महयोग को पहचानो और उमे खुलकर व्यक्त होने दो। दमी नरह अविश्वाम और मनी बातों को एक तल पर वो और उनके बीच छिपे महयोग को पहचानो नो तुम पाओगे कि तुम्हारी ही आत्मा ये चार प्रपच रच रही है। तुम्हे वे ही शब्द मनने को मिलेंगे जो तुम्हारे अविश्वास को neutralize कर सकेंगे। तुम्हें वैमे ही म्वार्थ मिलंगे जो तुम्हारे स्वार्थको neutralize कर मकेगे। इम तल पर आत्मा मर जायगी, ऐमी मृत्यु जिमे दार्शनिक जानने है। यहा दीया बुझने ही जोन एक गहरे मदम तल पर जगेगी और तुम्हारी दुर्जेय आत्मा और मग्ल और integerate होकर जगेगी। इन चारों मे लड़ो मन । ये तो अमन् है । अमन् मे लड़ना या उमे अपनाना दोनों ही उमे सन् बनाने के उपक्रम है। इसी उपक्रम में आत्मा अपने पर "पैगमाइट" बैठा रहा है स्वयं मर्ख बन रहा है। जोसच्चा श्रावक है वह इस प्रकार विकारों मे भी प्रकाश लेना मोख लेगा। आखिर ये मव एक म्पेक्ट्रम के ही तोरंग है। इनमे लड़कर इन्हे अलग अस्तित्व क्यों देने हो और फिर क्यों उन्हीं मे घिरने हो? इन्हे लौटा दो उम एक दुर्जेय आत्मा मे जिसने इतने विलक्षण खिलौनों से अपना बाजार मजाया है । 56
SR No.010572
Book TitleVarddhaman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmal Kumar Jain
PublisherNirmalkumar Jain
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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