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________________ किया जो नारी आज तक खोज-खोज कर भी न खोज सकी और टटती ही गई।आज की क्लान्त पथभ्रष्ट पश्चिमी नारी जोहाथों में आजादी के झण्डे लिये पुरुष विरोधी नारे लगानी फिर रही है वह अपने मनममे नये अंधेरे रच रही हैं उम पुरुष को मुलाए रखने के लिये जिमे हजारों वर्ष पूर्व उममें मुला दिया गया था। यह आधनिक लिब मवमेण्ट वाली नारी भी पुरुष की दामता मे बंधी है । यह केवल उम दामना का दूमग रूप है । महावीर ने बताया कि विपरीतो को जीतने का मार्ग विरोध नहीं है परन्तु वैपरील्य को अनावश्यक कर देना है। वह पुरुष जिममे उन्हें दामना और गलामी मिली है उममे मरिन । मार्ग उममे विरोध या उसके प्रति विद्रोह नहीं है बल्कि म्वय अपन में मोये पुरुष को जगा लेना है। महावीर का मार्ग आत्रामक है क्योंकि वह योद्धा है । महावीर एटिव है पमिव नहीं। वह नागे गं भी यही कहते है कि पमिव बनने में तुम अपने म्बम्प को प्राग्न नहीं हो मवनी। केवल आत्मसमर्पण एक अपंग है, एक भल है। उम पुरुष को आन्ममान करो जिमे मर्पित होना चाहते हो। वह गुरुप नन्व तुममे मो रहा है। मम्भवतः मनुष्य जाति में मिवाय महावीर और बद्ध के कोई भी अन्य विचारक ऐमा नहीं हुआ जिमने नारी को महीं जानि का यह मार्ग दिवाया हो। यह दो महापुरुप वास्तव में पुरुष की पर्गिधयों में ऊपर उठ गये जहां मे वह पुरुप-नारी को ममान म्नर पर देख मकन थे। उन्हें पुरुप और नारी में कोई जैविक भेद नहीं मिला। अन्नग्था केबल दृढना (Emphasis)का, जोर का। गारिक भंद कंवल गरीर तक ही सीमित है। उन्होंने जाना था कि मानमिक नल पर नार्ग में पुरुप में भंद किमी ऐतिहासिक भूल के कारण अधिक उत्पन्न हा ह, उननं है नहीं। हम भूल से नारी और पुरुष के बीच ममान बन्धना कं बन्धन टट गये, एक ग्वामी बन गया एक दामी बन गई । उम दामी के मन में म्वामी के प्रति क्षोभ आना ही था। आज का लिव मवमेण्ट उम विचाग्धाग की म्वाभाविक उपलब्धि है जो पुरुप ने व्यवहारिक नल पर नार्ग पर लादी है। ढाई 37
SR No.010572
Book TitleVarddhaman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmal Kumar Jain
PublisherNirmalkumar Jain
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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