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________________ निर्वाग के अनुपयुक्त भी नही कहा। दरअमल ममस्त जैन विचारधारा नारी के प्रति हीन भावनाओं के विरुद्ध है । वेताम्बरों के अनुसार म्बय मल्लिनाथ नीर्थकर एक नारी थे। केवल एक बात पर महावीर ने जोर दिया। वह पुरुप सिंह थे। उनका जीवन दर्शन व्यवहारिक था। वे किमी कोमल व्याल के महारे यथार्थ मे आव नही मीच मकने थे। उन्होंने अनभवों में जाना था कि केवल ममर्पण का पाठ, म्वाभाविक रूप में जो नारी लेनी है, उसका उनके युग मे और उममे पूर्व बहुत दुरुपयोग हुआ । आदिकाल मे पुरुप ने नारी में ममर्पण भावना को उकमाया है और आज वह उसका स्वभाव बन गया है। यह ममर्पण भाव वह एक दुष्ट व्यक्ति के प्रति भी उमी श्रद्धा मे रखती है यदि वह उसके जीवन का प्रणता बन जाय । महावीर ने जाना था इस प्रकार नारी ममर्पण-आग्रह करके मदाचार में गिरी है । मन्य मे दूर हटी है। उन्होंने नारी का नहीं, ममर्पण की इम एकागी भावना का तिरस्कार किया । उन्होने नारी को अपनी ऐनिहामिक भल मघाग्ने के लिये ललकाग । इनिहाम के शुरू में मनुष्य ने जो भूल की थी और शतरूपा को मगिनी न बनाकर एक दामी बनाया था महावीर ने इम परम्पग को ललकाग था। महावीर ने नारी में कहा कि जब तक तुम अपने में उम पुरुष को नही जगाओगी जिसके प्रनि तुम्हे मर्पित होना है तब तक तुम्हें निर्वाण नही हो सकता। वह पुरुष नत्व तुममें भी उमी नरह है जिम तरह पुरुषो मे है। तुम उसे भूल गई होऔर उसकी पूनि भौतिक पुरुषों में डूढ रही हो। भौतिक पुरुप भौनिक नारी की पूर्ति कर सकता है परन्तु मानमिक नारी का समर्पण ग्रहण करने का अधिकार केवल उम मानसिक पुरुष को है जिसे मनाय जानिने दनिहाम के शुरू मे नारी के मनम अधेरो मे मला दिया था। मम्भवतः पुरुप की लोलपता और शामन की प्रवचना इसके पीछे उद्देश्य रही है । परन्तु महावीर तो शासन, दर्शन और अनेक मंकीर्णताओं मे ऊपर उठ चके थे । वे कब इम विडम्बना को स्वीकार करते। उन्होने नारी के लिये वह मार्ग प्रशस्त 36
SR No.010572
Book TitleVarddhaman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmal Kumar Jain
PublisherNirmalkumar Jain
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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