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________________ २८४ वर्द्धमान ( ३६ ) न काल ऐसा इह लोक मे वचा, न जीव उत्पन्न हुये, मरे जहाँ, इसी लिए विन-समाज में यहाँ, प्रसिद्ध वैज्ञानिक काल-लोक है। ( ३७ ) न योनि ऐसी इस भूमि में वची जिसे न संप्राप्त हुआ स्व-जीव हो, अत. जिसे पडित विश्व मानते, प्रसिद्ध भू मे भव-लोक है वही । ( ३८ ) सदैव प्राणी भ्रमते त्रिलोक में स्व-कर्म मिथ्यात्व-समेत पालते, समेटते अर्जित पाप-पुज है, प्रभावशाली यह भाव-लोक है । विमुक्ति-दाता जिन-धर्म-श्रेष्ठ है, अत करो पालन यत्न से इसे, अनुप स्न-वय-ल्प मोक्ष का निधान' है केवल-जान सर्वश । भाडार।
SR No.010571
Book TitleVarddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnup Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages141
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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