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________________ २६ | तीर्थकर महावीर दीर्घकालीन संयम साधना के बाद नन्दन मुनि ने अन्त में संथारा किया और समाधि मरण, जिसे आज की भाषा में 'शान्तिपूर्वक इच्छा मृत्यु' भी कह सकते हैं प्राप्त कर प्राणत स्वर्ग में गये । तीर्थकर महावीर की आत्मा का यही अन्तिम भव था। इस स्वर्ग से च्यवन कर वे सीधे मनुष्य भव में आये जहां पर साधना के उच्चतम शिखर पर पहुंचकर सिद्धि प्राप्त की, आत्मा से परमात्मा बने ।' ७ साघु भक्ति १७ समाधि उत्पादन (मुमुक्षु जनों ८ ज्ञान भक्ति को औषधि आदि का सहयोग ६ दर्शन भक्ति कर तथा साधना मार्ग में १० विनय की आराधना प्रोत्साहित कर उनको समाधि ११ चारित्र की आराधना पहुंचाना) १२ ब्रह्मचर्य का पालन १८ अभिनव ज्ञानग्रहण-(सूत्र१३ शुभ ध्यान अर्थ पर चिन्तन कर उसके १४ तप (विवेक पूर्ण तपश्चरण) रहस्यों को समझते रहना) १५ दान १९ श्रुत भक्ति १६ वयावृत्य २० प्रभावना -झातासूत्र १६ इन बीस स्थानों में से किसी एक स्थान की विशिष्ट आराधना से भी तीर्थंकर गोत्र का बंधन हो सकता है। नन्दनमुनि ने सभी स्थानों की आराधना की। ऐसा माना जाता है कि प्रथम एवं अन्तिम तीर्थंकर की आत्मा ने पूर्व भव में इन बीसों स्थानों की आराधना की, तथा मध्य के बाईस तीर्थंकरों ने एक, दो तथा सभी स्थानक की। -आवश्यक नियुक्ति १८२ जन परम्परा में तीर्थकर पद की प्राप्ति के हेतुभूत ये बीस स्थानक माने गये है, वैसे बौद्ध परम्परा में बुद्धत्व प्राप्ति के हेतु दश पारमिताओं का वर्णन मिलता है। १ विषष्टिः पर्व १०, सर्ग १
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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