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________________ २४० | तीर्थकर महावीर में जाकर आत्म-निंदा करने लगा । अपने दुष्कृत पर पाचात्ताप कर उसकी शुद्धि का मार्ग पूछा । भगवान ने उसे संयम-साधना का मार्ग बताया। मगधपति श्रेणिक, महामंत्री अभयकुमार महावीर के समवसरण में बैठे थे। "जिस रोहिणेय को पकड़ने में बुद्धिनिधान अभयकुमार भी असफल हो गया, वह मगध का दुर्दान्त दस्युराज आज श्रमण महावीर के चरणों में खड़ा-आत्म-शोधन का मार्ग पूछ रहा है, शरण मांग रहा है ?" श्रेणिक ने रोहिणेय को गले से लगा लिया । अभय ने मित्रता का हाथ बढ़ाया। चोरी में लूटे हुए समस्त स्वर्ण-भंडारों का, गुप्तखजानों का पता बताकर रोहिणेय ने महाराज श्रेणिक को मगध की जनता का समस्त चुराया हुआ धन वापस कर दिया और अपने अपराधों की क्षमा मांग कर वह भगवान महावीर का शिष्य बन गया, श्रमणधर्म के असिधारा-पथ पर बढ़ गया। अर्जुन हत्यारा था, रोहिणेय चोर था। दोनों ही अत्यन्त क्रूर ! दुर्दमनीय ! दुष्टता के दैत्यरूप ! दोनों के मलिन संस्कारों का शुद्धीकरण किया-महावीर की समता-सावी वाणी ने । अनार्य को आर्य बनाया, असाधु को साधुता प्रदान की, हिंसक को अहिंसक, चोर को साहूकार ! यही या महावीर की संस्कार-शुद्धि की प्रक्रिया का एक दिव्य रूप ।" आईक : अनार्य रक्त में मार्य आत्मा संस्कार परिवर्तन की दिशा में भगवान महावीर के जीवन की अनेक उपलब्धियाँ हैं । संस्कार-शुटि के माध्यम से अनेक दुष्टशिष्ट बने, दुर्जन सज्जन बने, असाधु साधु बने । वहाँ कुछ ऐसे विस्मयकारक उदाहरण भी मिलते हैं कि अनार्य देश में जन्मे, अनार्य रक्त में पले व्यक्ति उनके स्मरण व साक्षात्कार से आर्यधर्म में दीक्षित हो गए । इनमें से दो उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं-आक कुमार और कोटिवर्ष के अधिपति किरातराज के। आईक कुमार के विषय में यह प्रसिद्ध है कि भगवान महावीर के परोक्ष मानसिक संपर्क से बाईक के संस्कारों में परिवर्तन बाया और वह परिवर्तन इतना वेगवान था कि उसकी प्रेरणा से सैकड़ों अन्य व्यक्तियों के संस्कार भी बदल गये। इसप्रकार वह भगवान महावीर के पास बाने से पूर्व ही जातिस्मरण मान के कारण नियन्व-प्रवचन का श्रद्धालु बनकर दीक्षित भी हो गया था। जाति स्मृति से हो उसके संस्कारों में परिवर्तन बाया बोर उसका निमित्त बना महावीर का श्रावक बमय । उसके साथ महामंत्री अभयकुमार की मित्रता थी। एक बार उपहारस्वरूप
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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