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________________ कल्याण-यात्रा | २४१ अभय ने उसे श्रमण-परम्परा के कुछ धार्मिक उपकरण भेजे, जिन्हें देखते-देखते बाईक को पूर्वजन्म की स्मृति हो गई। अनार्यदेश से चलकर वह बार्यदेश में पाया और मुनिव्रत ग्रहण कर लिए । आद्रक मुनि भगवान के पास आने से पूर्व बनेक राजकुमारों, तापमों और मंखलि गौशालक के साथ तत्त्वचर्चा करता है। गौशालक उसके समक्ष महावीर के पूर्व-पश्चात् जीवन में विरोधाभास दिखाकर उसे अपनी ओर आकृष्ट करने का प्रयत्न करता है। महावीर पर अनेक प्रकार के सीधे आक्षेप करता है, जिनका बाईककुमार बड़ी ही पैनी तर्क एवं व्यवहार दृष्टि से उत्तर देता है । आद्रक की प्रेरणा से अनेक राजकुमार, तस्कर एवं तापस प्रतिबुद्ध होकर भगवान के पास आते हैं और वहां उपदेश सुनकर सभी दीक्षित हो जाते हैं।' अनार्य रक्त में मार्य आत्मा का तेजस्वी रूप आद्रं ककुमार की कथा में स्पष्ट होता है। विस्तृत जीवनकथा सूत्रकृतांग की टीका में देखी जा सकती है।' किरातराज : रत्नों की खोज में साकेत नगर में महावीर का तत्त्वज्ञ श्रावक सार्थवाह जिनदेव रहता था। जिनदेव एक बार व्यापार-यात्रा करता हुमा कोटिवर्ष (राट देश की राजधानी) गया । वहाँ का शासक किरातराज नाम से प्रसिद्ध था। . जिनदेव अपने देश के बहुमूल्य वस्त्र-मणि-रत्न आदि का उपहार लेकर किरातराज से मिला । सुन्दर उपहार से किरातराज बहुत प्रसन्न हुआ। रत्नों को देखकर वह विस्मित हो पूछने लगा-"इतनी सुन्दर वस्तुएं कहाँ उत्पन्न होती हैं ?" जिनदेव ने कहा--"हमारे प्रदेश में इनसे भी सुन्दर और बहुमूल्य रत्न उत्पन्न होते हैं।" "मेरी तो इच्छा होती है कि मैं भी तुम्हारे प्रदेश में जाकर ऐसी सुन्दर वस्तुएं देखें....."लेकिन तुम्हारे वहाँ के शासकों का डर लगता है.?" किरातराज ने कहा। ___ "महाराज! हमारे राजाबों से रने की कोई बात नहीं है, वह आपके साथ बड़े प्रेम और सम्मान का व्यवहार करेंगे, भाप चलिए, मैं वहां की सब व्यवस्था कर देता हूं।" १ बाईक का महावीर के पास बागमन दीखा वर्ष १९वां । वि.पू. ४६४। २ विस्तृत विवरण के लिए देखें-पूवकतांग त० २,०६ की टीका व नियुक्ति।
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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